• Thursday, January 12, 2017

    Harivansh rai bachchan Hindi poem - खवाहिश ❞ नही मुझे ❝ मशहुर ❞ होने की

    ❝ खवाहिश ❞ नही मुझे ❝ मशहुर ❞ होने की
    आप मुझे ❝ पहचानते ❞ हो बस इतना ही काफी है
    अच्छे ने ❝ अच्छा ❞ और बुरे ने ❝ बुरा ❞ जाना मुझे
    क्यों की जिसकी जितनी ❝ जरुरत ❞ थी
    उसने उतना ही पहचाना मुझे !!

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    ज़िन्दगी का ❝ फ़लसफ़ा ❞ भी कितना अजीब है,
    शामें ❝ कटती ❞ नहीं, और ❝ साल ❞ गुज़रते चले जा रहे हैं !!
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    एक ❝ अजीब ❞ सी दौड़ है ये ❝ ज़िन्दगी ❞
    जीत जाओ तो कई ❝ अपने ❞ पीछे ❝ छूट ❞ जाते हैं,
    और हार जाओ तो ❝ अपने ❞ ही पीछे ❝ छोड़ ❞ जाते हैं !!
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    ❝ बैठ ❞ जाता हूं ❝ मिट्टी ❞ पे अक्सर…
    क्योंकि मुझे अपनी ❝ औकात ❞ अच्छी लगती है !!

    harivansh rai bachchan hindi poem

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    मैंने ❝ समंदर ❞ से सीखा है जीने का सलीक़ा,
    चुपचाप से ❝ बहना ❞ और अपनी ❝ मौज ❞ में रहना !!
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    ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ❝ ऐब ❞ नहीं है
    पर ❝ सच कहता हूँ मुझमे कोई ❝ फरेब ❞ नहीं है !!
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    जल जाते हैं मेरे ❝ अंदाज़ ❞ से मेरे ❝ दुश्मन ❞
    क्यूंकि
    एक मुद्दत से मैंने
    न ❝ मोहब्बत ❞ बदली और न ❝ दोस्त ❞ बदले !!.
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    एक ❝ घड़ी ❞ ख़रीदकर हाथ मे क्या
    बाँध ली – ❝ वक़्त ❞ पीछे ही पड़ गया मेरे !!
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    ❝ सोचा ❞ था ❝ घर ❞ बना कर बैठुंगा सुकून से..
    पर घर की ज़रूरतों ने ❝ मुसाफ़िर ❞ बना डाला !!!
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    ❝ सुकून ❞ की बात मत कर ऐ ग़ालिब….
    बचपन वाला ❝ इतवार ❞ अब नहीं आता !!

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    जीवन की ❝ भाग-दौड़ ❞ में –
    क्यूँ ❝ वक़्त ❞ के साथ रंगत खो जाती है ?
    हँसती-खेलती ❝ ज़िन्दगी ❞ भी आम हो जाती है..
    एक सवेरा था जब ❝ हँस ❞ कर उठते थे हम
    और आज कई बार
    बिना ❝ मुस्कुराये ❞ ही ❝ शाम ❞ हो जाती है !!
    .
    कितने ❝ दूर ❞ निकल गए,
    रिश्तो को निभाते निभाते..
    खुद को ❝ खो ❞ दिया हमने,
    अपनों को पाते पाते..
    लोग कहते है हम ❝ मुस्कुराते ❞ बहोत है,


    और हम थक गए ❝ दर्द ❞ छुपाते छुपाते..
    खुश हूँ और सबको ❝ खुश ❞ रखता हूँ,
    लापरवाह हूँ फिर भी सबकी ❝ परवाह ❞ करता हूँ..
    मालूम है कोई मोल नहीं मेरा,
    फिर भी,
    कुछ ❝ अनमोल ❞ लोगो से ❝ रिश्ता ❞ रखता हूँ !!

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